Saturday, November 1, 2008

mera dost aaya h...

जय मेरा बच्चपन का दोस्त, लेकिन रिश्ते में भाई। मेरे बड़े मामा जी के ’येष्ट पुत्र-जयप्रकाश जांगिड़। पढ़ाई में बहुत तेज, तभी तो आज एक राजकीय अध्यापक है। बचपन में साथ-साथ गरमियों की छुटि़यां मनाते थे, इसलिए बचपन की यादें तो बहुत हैं। गरमियों में जब खेत में जाते तो बिच रास्ते से ही घर आ जाते, क्योंकि डर लगता था, वो भी मारनी गायों से। नानी सुबह-सुबह बाजरे का खिचड़ दही के साथ खिलाकर हम दोनों को भेज देती थी, सोचती थी की खेत की रखवाले करके आयेंगें बेचारे। परंतु नानी मा¡ को क्या पता था कि ये बड़े डरपोक हैं कि खेत बीच रास्ते से ही आ जायेगें। आज नानी तो नहीं हैं लेकिन इस गलती पर शरमिंदगी महसूस होती है। आज नानी मा¡ होती तो माफी मा¡ग लेते हम दोनों। आज जय मेरे पास श्रीगंगानगर आया है, मिलकर याद ताजा हुई। दोनों एक बार बचपन की उन यादों में खो गये, उन सुकून भरे पलों में हम दोनों खोगये। बहुत सारी बातें की, दोनों बाजर गये खाया पीया, जय की पंसद की वस्तुओं की खरीददारी की। आज सुबह उसको गा¡व जाना था, रेलगाड़ी में छोडुने गया तो बहुत महसुस हुया कि काश वो बचपन के पल लोट आते, दोनों कई कई दिन साथ रहते खुब खेलते। लेकिन आज आज है।