Monday, October 12, 2020
सावनी सावणी
दोस्तो
मैं बात करूं हूँ सावन की खेती की, जो सावन के महीने में पहली बरसात में बोई जावे स। खुश हुआ किसान सब पड़े हैं सावन की पहली बरखा, अपने राजस्थान में तो आज भी बरसात का पानी पीने वास्ते कुंड टांके में इक्कठा करे हैं। वो जो पानी मिट्टी से मट मेला हो जावे है तो भाई इसमें थोड़ी फिटकरी डाला करे स। जिससे के पानी साफ भी हो जावे स्वादिष्ट व स्वास्थ्य वर्द्धक हो जावे स। सावन में बोई जावे है तो उसे सवाणी की खेती तो बोला सां। सावन की में
मूंग मोठ ग्वार बाजरा की मुख्य खेती होंगे स, कहीं कहीं कुछ भाई तिल तारा मीरा भी गेर देंवें हैं। सावन के महीने में इस फसल पर जब जब सावनी फुहार की बूंदे आकर जब जब फसल पर गिरे है, तब तब इस फसल ने नया जीवन मिले हैं। ककड़िया मतीरा तो सवाणी की उपहार है जो स्वतः मिल जावे है। कचरिया तो बिना बोये ही बन जावे है। जिसकी चटनी बना के खावे तो पडोशी तरसे। और गंवार की कच्ची कच्ची फलियाँ की सब्जी बने है तो इसकी खुशबू ही लाजवाब है, खाने के लिए तो फिर लस्सी के साथ घी डालकर खावे तो वो भी बाजरे की रोटी के साथ तो पूरा सावन ही धन्य हो जावे है। आश्चर्य तो तब हो जाता है जब बाजरे की सिटी आग पर भून कर सिटी की डंडी तोड़ कर बाजरे के भुने दाने निकल कर चबा चबा खावे तो क्या मीठा लागे स। कचरी की जो चटनी है उसका तो मुकाबला है ना है मजा आ गया । सावन के महीने में इंसान को जो खेती रूप उपहार मिला है वह एक प्रकृति की गोद में जाने का स्वाद जैसा है सावन के महीने में घनगोर घटाओ के साथ गिरती फुहार नया जीवन भरती है।
सावन के महीने में कुछ पुरानी व परम्परा जूड़ी हैं जो कि नया नया जिसका विवाह हुआ है उसको पता है। जिन नए युवाओं को नहीं पता उसको कमेंट बॉक्स में आकर जरूर बताऊंगा।मेरे ये कुछ शब्द सावनी पर आपको कैसे लाग्स कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताएं। ताकी मेरा कुछ लिखने का होशला बढे।
जय सावन
जय सावनी
जय सवाणी
जय भारत
Friday, August 26, 2011
Saturday, August 21, 2010
वो सर्द रात
Raat ki duty. vo karaake ki Sarad Raat. maine vaisi karak sarad raat aaj tak nahi dekhi. kambbal me pura lipata Jisham...Karake ki vo sarad raat...
Saturday, November 1, 2008
mera dost aaya h...
जय मेरा बच्चपन का दोस्त, लेकिन रिश्ते में भाई। मेरे बड़े मामा जी के ’येष्ट पुत्र-जयप्रकाश जांगिड़। पढ़ाई में बहुत तेज, तभी तो आज एक राजकीय अध्यापक है। बचपन में साथ-साथ गरमियों की छुटि़यां मनाते थे, इसलिए बचपन की यादें तो बहुत हैं। गरमियों में जब खेत में जाते तो बिच रास्ते से ही घर आ जाते, क्योंकि डर लगता था, वो भी मारनी गायों से। नानी सुबह-सुबह बाजरे का खिचड़ दही के साथ खिलाकर हम दोनों को भेज देती थी, सोचती थी की खेत की रखवाले करके आयेंगें बेचारे। परंतु नानी मा¡ को क्या पता था कि ये बड़े डरपोक हैं कि खेत बीच रास्ते से ही आ जायेगें। आज नानी तो नहीं हैं लेकिन इस गलती पर शरमिंदगी महसूस होती है। आज नानी मा¡ होती तो माफी मा¡ग लेते हम दोनों। आज जय मेरे पास श्रीगंगानगर आया है, मिलकर याद ताजा हुई। दोनों एक बार बचपन की उन यादों में खो गये, उन सुकून भरे पलों में हम दोनों खोगये। बहुत सारी बातें की, दोनों बाजर गये खाया पीया, जय की पंसद की वस्तुओं की खरीददारी की। आज सुबह उसको गा¡व जाना था, रेलगाड़ी में छोडुने गया तो बहुत महसुस हुया कि काश वो बचपन के पल लोट आते, दोनों कई कई दिन साथ रहते खुब खेलते। लेकिन आज आज है।
Tuesday, October 14, 2008
सज्जगता सम्मान
Saturday, September 6, 2008
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